“साम, दाम, दंड, भेद: बिहार में मोदी-अमित शाह का ‘मास्टरप्लान’
बिहार विधानसभा चुनावों के ऐलान के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का ‘तंत्र’ फिर एक बार सक्रिय हो चुका है।
इस बार का खेल पहले से कहीं ज़्यादा योजनाबद्ध, निर्दय और ‘कुटिल राजनीति’ से भरा हुआ दिखाई दे रहा है — एक ऐसी राजनीति जिसमें साम, दाम, दंड और भेद सब कुछ लागू किया जा चुका है।
नीतीश कुमार को ‘कट टू साइज’ करने की तैयारी
बीजेपी ने इस बार सीटों के बंटवारे में ही संदेश दे दिया है कि नितीश कुमार अब मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं रहेंगे।
जेडीयू और बीजेपी दोनों को 101-101 सीटें दी गई हैं, जबकि चिराग पासवान की एलजेपी को 29 सीटें, उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को 6-6 सीटें दी गई हैं।
यानी एक तरफ बीजेपी ने सहयोगियों को संतुलित जगह दी, दूसरी तरफ नितीश कुमार की “बर्गेनिंग पावर” को खत्म कर दिया।
बीस साल से बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे नितीश कुमार अब अपने ही बनाए जाल में फंसे नजर आ रहे हैं।
दिल्ली से चला दांव: लालू-तेजस्वी पर कानूनी शिकंजा
चुनाव की तारीखें तय होते ही देश की राजधानी दिल्ली में एक और चाल चली गई — लालू यादव और उनके पूरे परिवार को IRCTC घोटाले के मामले में अदालत में पेश होने के लिए बुलाया गया।
तेजस्वी यादव का नाम पहली बार चार्जशीट में जोड़ा गया।
यह सिर्फ एक संयोग नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक समय-निर्धारण (political timing) का हिस्सा है।
चुनाव से ठीक पहले आरोप तय कर, संदेश साफ है —
“हम तुम्हें मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे।”
गृह मंत्री अमित शाह पहले ही बेगूसराय की रैली में कह चुके थे कि “हम तेजस्वी को चुनाव लड़ने नहीं देंगे।”
और अब वही बयान चुनावी हकीकत बन चुका है।
तेजस्वी यादव का जवाब: “हम तूफानों से लड़ने वाले हैं”
तेजस्वी यादव ने इस हमले का जवाब शांत लेकिन दृढ़ता से दिया।
उन्होंने कहा —
“हम न्यायालय का सम्मान करते हैं। हमें पहले से पता था कि चुनाव के समय ऐसा होगा। लेकिन हम भाजपा से लड़ते आए हैं और आगे भी लड़ेंगे। तूफानों से लड़ने में मज़ा है। हमने संघर्ष का रास्ता चुना है, और मंज़िल तक पहुंचेंगे।”
तेजस्वी की यह प्रतिक्रिया महज़ एक बयान नहीं, बल्कि बिहार की युवा राजनीति का वह स्वर है जो डरता नहीं, टकराता है।
‘वोट चोर गद्दी चोर’: बिहार से उठा भाजपा के खिलाफ नारा
बिहार ने हमेशा भारतीय राजनीति को दिशा दी है।
इस बार फिर वही हुआ —
“वोट चोर, गद्दी चोर” का नारा बिहार की धरती से उठा और बीजेपी के ‘मैनिपुलेटेड इलेक्शन सिस्टम’ के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गया।
इंडिया गठबंधन की “वोटर अधिकार यात्रा” और विपक्षी लामबंदी ने इसे और धारदार बना दिया।
महिलाओं को 10,000 की ‘चुनावी रिश्वत’?
चुनाव से कुछ दिन पहले बिहार सरकार ने “स्वयं सहायता समूह” की महिलाओं को ₹10,000 देने की घोषणा की।
सरकारी बयान में इसे महिला सशक्तिकरण बताया गया, लेकिन विपक्ष और जनता इसे चुनावी रिश्वत कह रही है।
लगभग 1.21 करोड़ महिलाओं को यह राशि मिली — वह भी मतदान से ठीक पहले।
नितीश कुमार ने खुद कहा, “हमारा ध्यान रखना, चुनाव आ रहा है।”
इससे साफ संकेत है कि महिला वोट बैंक को कैश ट्रांसफर से प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।
‘मोदी तंत्र’ का बड़ा एजेंडा: बिहार को महाराष्ट्र बनाना
रोजनामा के विश्लेषण के मुताबिक, मोदी-शाह की रणनीति बिहार में वही है जो उन्होंने महाराष्ट्र में अपनाई थी —
पहले गठबंधन तोड़ो, फिर क्षेत्रीय दलों के नेताओं को कमजोर करो, और अंत में बीजेपी की सीधी सरकार बनाओ।
महाराष्ट्र की तरह अब बिहार में भी क्षेत्रीय अस्मिता पर प्रहार हो रहा है।
राजनीति या प्रतिशोध?
लालू यादव पर फिर से कानूनी शिकंजा, तेजस्वी को चुनावी जाल में फंसाने की कोशिश, नितीश को सीटों में ‘काटना’, और महिलाओं को नकद सौगात —
इन सबके बीच जो तस्वीर उभरती है, वह “राजनीतिक बदले की राजनीति” है।
एक ऐसी राजनीति, जिसमें लोकतंत्र की जगह रणनीति ले चुकी है।
निष्कर्ष: बिहार फिर से केंद्र में
बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक आत्मा का प्रतीक है।
और जब केंद्र सरकार के राजनीतिक हथकंडे यहां आज़माए जाते हैं, तो वह पूरे देश की राजनीति का संकेत होते हैं।
जैसा रोजनामा में कहा गया —
“इस बार मोदी जी साम, दाम, दंड, भेद सबका प्रयोग करेंगे। लेकिन बिहार की जनता समझदार है — और यह चुनाव सिर्फ सत्ता नहीं, आत्मसम्मान का होगा।”