November 22, 2025 12:16 am
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‘द ताज स्टोरी’ : एक और कोशिश इतिहास को झूठ में बदलने की

परेश रावल की नई फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ ताजमहल को शिवमंदिर बताने वाली पुरानी और खारिज की जा चुकी थ्योरी को दोहराती है। यह लेख इतिहास, प्रमाण और राजनीति के बीच उस सच्चाई को सामने लाता है, जिसे झूठ के प्रचार में दबा दिया गया है।

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क्या शाहजहां ताजमहल बनाते वक्त असमंजस में थे — “मकबरा बनाऊं या मंदिर?” परेश रावल की आने वाली फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ के टीज़र में यही दिखाया गया है — कि शाहजहां ने जब ताज का गुंबद खोला, तो उसमें भगवान शिव के दर्शन हुए। यह दृश्य सिर्फ सिनेमाई कल्पना नहीं, बल्कि एक पुरानी और खारिज की जा चुकी साम्प्रदायिक थ्योरी को फिर से जीवित करने की कोशिश है।

बीते कुछ सालों से, ताजमहल को “तेजोमहालय शिवमंदिर” बताने वाली अफवाहें बार-बार लौटती रही हैं। इस बार ये विवाद एक फिल्म के ज़रिए लौट आया है — एक बार फिर वही झूठ, वही नफरत, और वही इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का एजेंडा।

ताजमहल पर विवाद की कहानी कहां से शुरू हुई?

ताजमहल — जिसे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने “समय के गाल पर एक बूंद” कहा था, जिसे यूनिस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया, और जिसे देखने रोज़ करीब 12,000 पर्यटक आते हैं — वही इमारत कुछ लोगों को हमेशा खटकती रही है।
क्योंकि यह शाहजहां और मुमताज़ की मोहब्बत का प्रतीक है, और इसलिए भी कि यह मुगल काल की कला और स्थापत्य का चरम उदाहरण है।

सबसे पहले पी.एन. ओक नामक एक व्यक्ति ने यह दावा किया था कि ताजमहल असल में “तेजोमहालय शिवमंदिर” था। उन्होंने कहा कि उसके गुंबद पर उल्टा कमल बना है — जो मंदिर की निशानी है, और यह भी कि नीचे के 21 बंद कमरों में हिंदू मूर्तियां रखी हैं।

वे इस दावे को लेकर अदालतों तक गए। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई और सबूतों के अभाव में मामला खारिज कर दिया।
बाद में इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने प्रमाणों सहित बताया कि मुगल काल से पहले इस तरह का वास्तुशिल्प भारत में अस्तित्व में ही नहीं था।

सरकार और अदालतों की स्थिति साफ है

2017 में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने, तब एक पर्यटन पुस्तिका से ताजमहल का ज़िक्र हटाए जाने पर विवाद खड़ा हुआ। उसी दौरान, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने स्पष्ट कहा था कि —

“ताजमहल शिवमंदिर नहीं, एक मकबरा है।”

उन्होंने यह बयान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) की रिपोर्ट के आधार पर दिया था। ASI ने यह भी बताया कि नीचे के 21 कमरे सिर्फ संरचनात्मक मज़बूती के लिए बनाए गए हैं — वहां कोई मूर्ति या धार्मिक प्रतीक नहीं हैं।

इतिहास क्या कहता है?

कई ऐतिहासिक दस्तावेज़ इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि ताजमहल मुमताज़ महल की याद में शाहजहां ने बनवाया था।
दो विदेशी यात्री — पीटर मुंडी और टैवर्नियर — दोनों ने अपने यात्रा-वृत्तांत में लिखा है कि “बादशाह अपनी तीसरी बेगम मुमताज़ की मृत्यु से व्यथित है और उसकी याद में एक भव्य मकबरा बनवा रहा है।”

शाहजहां के दरबार की अकाउंट बुक्स में भी यह दर्ज है कि मकराना से संगमरमर मंगवाया गया, उसके परिवहन और भुगतान का ब्यौरा भी दर्ज है।
इतिहास के इन प्रामाणिक स्रोतों को कभी झुठलाया नहीं जा सका।

भूमि का विवाद और सच्चाई

यह भूमि राजा जयसिंह की थी, जो शाहजहां के करीबी थे। उन्होंने यह ज़मीन सम्राट को भेंट दी थी — या कुछ अभिलेखों के अनुसार, उचित मूल्य लेकर बेची थी।
लेकिन राजा जयसिंह वैष्णव परंपरा के अनुयायी थे, शिवभक्त नहीं। ऐसे में यह मानना कि उस भूमि पर कोई शिवमंदिर था — इतिहास और तर्क, दोनों के विपरीत है।

सांस्कृतिक मेल और कला का संगम

ताजमहल के निर्माण में 20,000 से अधिक कारीगरों ने 20 वर्षों तक काम किया।
मुख्य शिल्पकार उस्ताद अहमद लहौरी थे, और उनके साथ एक हिंदू सहायक शिल्पकार भी थे। इसलिए स्थापत्य में कुछ हिंदू मोटिफ़ मिलना स्वाभाविक है — जैसे बेल-बूटों के डिज़ाइन, या पुष्प आकृतियाँ।
यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान है, न कि मंदिर होने का सबूत।

झूठे आख्यानों का एजेंडा

फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ उसी पुरानी, खारिज की जा चुकी थ्योरी को फिर से उठाती है — जैसे पहले ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘केरला स्टोरी’ या ‘बंगाल फाइल्स’ जैसी फिल्मों ने किया।
इनका मकसद कला या इतिहास नहीं, बल्कि समाज में मुसलमानों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देना है।

ऐसी फिल्में इतिहास नहीं दिखातीं — प्रोपेगेंडा बेचती हैं।
वे हमें हमारे साझा अतीत से काटती हैं, ताकि साम्प्रदायिक राजनीति को और बल मिले।

ताजमहल की सच्चाई

ताजमहल एक मकबरा है — मुगल स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण।
उसकी सुंदरता में हिंदुस्तान की विविधता झलकती है, न कि किसी एक धर्म का प्रभुत्व।
आज जरूरत इस बात की है कि झूठ के बजाय सच्चाई को पहचाना जाए, और समाज में बढ़ती नफरत की इस राजनीति को चुनौती दी जाए।

राम पुनियानी

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