ज्ञानेश कुमार की प्रेस कॉन्फ्रेंस से और गहरा हुआ विवाद, महाभियोग लाने की भी चर्चा
देश की राजनीति में इस समय सबसे बड़ा टकराव चुनाव आयोग और विपक्षी दलों के बीच देखने को मिल रहा है। कांग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा उठाए गए वोटर लिस्ट धांधली और वोट चोरी के आरोपों के बाद चुनाव आयोग ने 17 अगस्त को अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। लेकिन तीन घंटे चली इस प्रेस कॉन्फ्रेंस ने आयोग की साख को और सवालों में ला दिया।
राहुल गांधी पर एफिडेविट मांगने से बवाल
चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी से सात दिन में शपथ पत्र (Affidavit) देने और देश से माफी माँगने तक की बात कही। विपक्ष का कहना है कि यह एक संवैधानिक संस्था की गरिमा के खिलाफ है। सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव आयोग किसी राजनीतिक दल के दबाव में काम कर रहा है।
विपक्ष का पलटवार – महाभियोग तक की तैयारी
विपक्षी दलों ने संसद के भीतर और बाहर इस मुद्दे को उठाया। अब विपक्ष एकजुट होकर मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना होगी।
अहम सवाल – रविवार को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों?
राहुल गांधी ने कई हफ्ते पहले ही वोट चोरी के आरोप लगाए थे। तीन सौ सांसदों ने संसद से लेकर चुनाव आयोग तक मार्च किया था। बावजूद इसके आयोग ने तब कोई सफाई नहीं दी। फिर अचानक रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की इतनी जल्दी क्यों? यह सवाल विपक्ष लगातार उठा रहा है।
पत्रकारों के सवाल और चुनाव आयोग की चुप्पी
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद पत्रकारों ने बिहार की वोटर लिस्ट में 67 लाख नाम हटाए जाने, बाढ़ के मौसम में SIR (Special Intensive Revision) कराने और विपक्षी दलों को भरोसे में न लेने जैसे सीधे सवाल पूछे। लेकिन चुनाव आयोग इनका संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव की रिपोर्ट और फर्जी वोटर
स्वतंत्र पत्रकारिता संगठन “Reporters Collective” की जांच रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। एक घर पर 500 से अधिक वोटरों का नाम दर्ज है, जबकि वह घर असलियत में मौजूद ही नहीं है। विपक्ष का आरोप है कि यही असली “वोटर बम” है, जिस पर आयोग खामोश है।
महिलाओं के नाम पर ग़लत तर्क
चुनाव आयोग के मुखिया ज्ञानेश कुमार ने CCTV फुटेज साझा करने के सवाल पर कहा कि इससे महिलाओं की प्राइवेसी प्रभावित होगी। इस बयान को महिला विरोधी और गैर-जरूरी बताया गया है। आलोचकों का कहना है कि दरअसल आयोग वोट चोरी उजागर होने से बचना चाहता है।
विपक्ष की मांग – पारदर्शिता और जवाबदेही
राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग का डेटा खुद ही धांधली का सबूत है। बावजूद इसके आयोग न तो जांच कर रहा है और न ही गड़बड़ियों को स्वीकार कर रहा है। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश से जुड़े 18,000 एफिडेविट आयोग को सौंपे, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
निष्कर्ष
वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों और चुनाव आयोग के रवैये ने लोकतंत्र की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव आगे बढ़ाता है तो यह भारतीय राजनीति का ऐतिहासिक मोड़ होगा।