December 9, 2025 2:03 am
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संघ-भाजपा का गेमप्लान डाल रहा ममता को बैकफुट पर!

पश्चिम बंगाल में भाजपा और RSS की बढ़ती सक्रियता, बाबरी मस्जिद की सियासत और ध्रुवीकरण ने ममता बनर्जी की राजनीति को चुनौती दी है। ग्राउंड रिपोर्ट।

पश्चिम बंगाल की लड़ाई: RSS एजेंडा, बाबरी मस्जिद की सियासत के सामने मुश्किल चुनौती

पश्चिम बंगाल के मैदानों से इस समय जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे साफ संकेत दे रही हैं कि 2026 का चुनाव ममता बनर्जी के लिए बेहद कठिन होने वाला है। 2021 के चुनाव में उन्होंने अपनी सीट खो दी थी, हालांकि सरकार बचा ली थी। लेकिन आज बंगाल में जो माहौल दिखाई दे रहा है, वह सत्ता और राजनीति की पूरी दिशा बदलता हुआ लग रहा है।

परेड ग्राउंड में लाखों की भीड़, गीता पाठ और RSS की रणनीति

कोलकाता के परेड ग्राउंड में हाल ही में लाखों लोगों की भीड़ — गीता पाठ, भगवा झंडे और मंच पर जोरदार नारों के साथ — यह दिखाने के लिए काफी थी कि भाजपा और RSS बंगाल को अपनी अगली बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं।

यह सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक संदेश था:

“हिंदू एकजुट हो, बंगाल हमारा अगला किला है।”

दूसरी तरफ मुर्शीदाबाद: बाबरी मस्जिद के नाम पर नया खेल

बंगाल की दूसरी तस्वीर मुर्शीदाबाद से आती है। यहाँ बाबरी मस्जिद के नाम पर हुमायूं कबीर की राजनीति ने हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को तेज कर दिया है।

हुमायूं कबीर:

  • 2019 में मुर्शीदाबाद से भाजपा के उम्मीदवार थे
  • बाद में TMC विधायक बने
  • और अब बाबरी मस्जिद के नाम पर नई मस्जिद का मुद्दा उठाकर फिर से वही खेल खेल रहे हैं

उनका दांव एकदम सीधा है: धर्म को चुनावी हथियार बनाना।

इस समय पूरे इलाके में यही चर्चा है:

“हिंदू खतरे में है।”

और यह बात सिर्फ बुजुर्गों में नहीं, बल्कि 27-29 साल के नौजवानों तक में बैठा दी गई है — जो नौकरी कर रहे हैं, गाड़ी चलाते हैं, और पहली ही बातचीत में यही कहते मिलते हैं:

“ममता दीदी के राज में हिंदू सुरक्षित नहीं है।”

यही सबसे सफल ध्रुवीकरण है।

मोदी हैं तो मुमकिन है — लेकिन विकास कहाँ है?

बंगाल के कई लोग अब यह मानने लगे हैं कि:

“केंद्र में मोदी हैं, तो अगर बंगाल में भी भाजपा आएगी तो विकास होगा।”

लेकिन विकास कैसा?

इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं।

क्योंकि असली एजेंडा विकास नहीं, हिंदुत्व की राजनीति है।

मोदी-आरएसएस की रणनीति बिल्कुल साफ है:

  • जमीन पर धार्मिक आयोजन
  • सोशल मीडिया पर नैरेटिव
  • और चुनाव में ध्रुवीकरण

ममता बनर्जी का आखिरी दांव: बंगाली अस्मिता और महिला वोट

इस समय ममता बनर्जी के पास सिर्फ दो मजबूत ताश हैं:

1. बंगाली अस्मिता

बंगाली पहचान और संस्कृति को बचाने का भावनात्मक मुद्दा।

यह वही कार्ड है जिससे 2021 में उन्होंने भाजपा की लहर को रोका था।

2. महिलाओं की योजनाएँ

लक्ष्मी भंडार योजना से:

  • सामान्य वर्ग की महिलाओं को ₹1200
  • दलित समाज की महिलाओं को ₹1500

यह पैसा लाखों परिवारों के लिए लाइफ-सेविंग है।

लेकिन जब राजनीति ध्रुवीकरण पर टिक जाए, तो काम और योजनाएँ पीछे छूट जाती हैं।

और यही बंगाल की सबसे खतरनाक स्थिति है।

संघीय ढांचे पर सबसे बड़ा खतरा

भारत का संविधान जिस संघीय ढांचे को देश की आत्मा कहता है — उस पर 2014 के बाद से लगातार दबाव है।

बंगाल उसका जिंदा उदाहरण है।

यहाँ लोगों के दिमाग में गहरे तक यह बात बैठा दी गई है:

“जो सरकार दिल्ली में है, वही अगर बंगाल में आएगी तो विकास होगा।”

यानी भाजपा का राष्ट्रीय वर्चस्व ही विकास का मॉडल बना दिया गया है।

यह संघीय व्यवस्था को कमजोर करता है।

रणनीति साफ है: किसी भी कीमत पर बंगाल फतह

इस समय बंगाल की जमीन गवाही दे रही है कि भाजपा और RSS:

  • साम, दाम, दंड, भेद
  • सबका इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं

यह सिर्फ चुनाव नहीं — पूरी राजनीतिक संस्कृति को बदलने का खेल है।

ममता बनर्जी सत्ता में हैं, अनुभव है, और बंगाल में पकड़ है।

लेकिन उनके सामने मुकाबला अब कठिन से कठिन होता जा रहा है।

निष्कर्ष

बंगाल में आज जो सबसे बड़ा सवाल है, वह यह नहीं कि ममता बनर्जी क्या कर रही हैं।
सबसे बड़ा सवाल है:

हम किस दिशा में धकेले जा रहे हैं?

धर्म आधारित ध्रुवीकरण का यह खेल अगर जारी रहा, तो:

  • मुद्दे गायब
  • बेरोजगारी गायब
  • विकास गायब

बचेगा सिर्फ एक नारा:

“हिंदू खतरे में है।”

और यही नारा बंगाल में चुनावी राजनीति को तय कर रहा है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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