December 8, 2025 2:27 am
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भारत का डंका या ढोल की पोल?

भारत के रुपये की गिरावट, कमजोर होती पासपोर्ट रैंकिंग और चीन द्वारा भारतीय नागरिक के अपमान से देश की वास्तविक अंतरराष्ट्रीय स्थिति का विश्लेषण।

रुपये की गिरावट, कमजोर पासपोर्ट और चीन का अपमान — हक़ीक़त का रियलिटी चेक

दुनिया में किसी भी देश की ताकत, उसका रुतबा और उसके नागरिकों का सम्मान कई चीजों पर निर्भर करता है, लेकिन दो आधार सबसे अहम माने जाते हैं — उसकी करेंसी यानी मुद्रा और उसका पासपोर्ट
आज हम इन्हीं दोनों पर रियलिटी चेक करेंगे।

सरकार कहती है: “भारत का डंका बज रहा है।”
सवाल यह है — कितना बज रहा है और कैसे बज रहा है?

1. रुपये का गिरना और अर्थव्यवस्था की असलियत

रुपये की हालत आप देख ही रहे हैं। हर हफ्ते नया “रिकॉर्ड” टूट रहा है।
21 नवंबर को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.66 के सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ। अब अनुमान है कि यह जल्द ही 90 रुपये का आंकड़ा पार कर जाएगा।

यानी, भारतीय रुपया इस समय 89.26 प्रति डॉलर के आसपास है।

रुपये के गिरने का मतलब क्या है?

  1. अर्थव्यवस्था दबाव में है।
    दावा चाहे चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का हो, लेकिन कमजोर मुद्रा आर्थिक कमजोरी का संकेत है।
  2. आयात महंगा होता है, खासकर पेट्रोलियम पदार्थ।
    पहले रूस से सस्ता तेल लेकर “मेगा प्रॉफिट” पर जनता को बेचा जा रहा था, लेकिन अब सस्ता खरीद ही बंद हो गई — और महंगा खरीदकर जनता पर और महंगा डाला जाएगा।
  3. महंगाई बढ़ती है।
  4. विदेश यात्रा और विदेश में पढ़ाई महंगी हो जाती है।

रिपोर्टें बताती हैं कि 2025 भारतीय रुपये का सबसे खराब साल साबित हो रहा है। अब तक रुपया डॉलर के मुकाबले 4.5% गिर चुका है।

2. मोदी और बीजेपी के पुराने बयान — अब क्या कहेंगे?

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने गिरते रुपये पर प्रधानमंत्री पर तंज कसा और पूछा:

“क्या PM को 2013 की अपनी टिप्पणी याद है?”

याद दिला दें — मोदी जी ने तब कहा था कि रुपये की गिरावट का मतलब है देश की साख गिरना, प्रधानमंत्री की कमजोरी।

स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने तक कहा था—

“रुपया नहीं गिर रहा, देश की प्रतिष्ठा गिर रही है।”

लेकिन आज वही बातें करने वाले नेता और समर्थक चुप हैं।
जब सत्ता में नहीं थे तब जो चिंता जाहिर करते थे, आज वह चिंता गायब है — शायद “अमृतकाल” में चिंता प्रासंगिक नहीं रही?

2014 में डॉलर 58.58 रुपये था।

अब लगभग 90 रुपये

कुछ लोगों के लिए शायद यही “विकास” है।

3. भारत का पासपोर्ट — लगातार कमजोर होता प्रभाव

Henley Passport Index की ताज़ा रैंकिंग में भारत 199 देशों में 85वें स्थान पर है।
पिछले साल की तुलना में 5 स्थान और गिरावट।

हमसे ऊपर हैं — रवांडा, घाना, अज़रबैजान जैसे छोटे देश जिनकी अर्थव्यवस्थाएं हमसे बहुत छोटी हैं।

दस साल का हिसाब

  • 2014: 52 देश वीज़ा-मुक्त — रैंक 76
  • 2023: 60 देश
  • 2024: 62 देश
  • अब 2025 में यह संख्या घटकर 57 रह गई है।

बीबीसी के अनुसार पासपोर्ट की ताकत इस बात का प्रतीक है कि दुनिया आपको कितना भरोसेमंद मानती है।
कमजोर पासपोर्ट का मतलब —

  • ज़्यादा कागजी कार्रवाई
  • ज़्यादा खर्च
  • कम यात्रा सुविधा
  • लंबा इंतज़ार

भारत के कमजोर प्रदर्शन के पीछे कारण बताए गए:
आर्थिक स्थिरता, राजनीतिक माहौल, और अन्य देशों के प्रति उदारता — जिनमें भारत की कमी दर्ज हो रही है।

4. चीन का नया अपमान — भारतीय नागरिक के पासपोर्ट को “अमान्य” बताया

अब आते हैं सबसे गंभीर मुद्दे पर।

चीन ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश से आए एक भारतीय नागरिक का पासपोर्ट अमान्य बताते हुए उसे घंटों रोककर पूछताछ की।

उसे साफ कहा गया:

“अरुणाचल भारत में नहीं, चीन में है। आपका पासपोर्ट मान्य नहीं है। आपको चीनी पासपोर्ट के लिए आवेदन करना चाहिए।”

यह वही चीन है जिस पर कभी 56 इंच की छाती और “लाल आंख” दिखाने की बातें होती थीं।
आज वही देश हमारे नागरिकों का अपमान कर रहा है।

भारत ने औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है —
लेकिन यह घटना बताती है कि दुनिया में भारत की कूटनीतिक हैसियत कहां खड़ी है।

विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के साथ फोटो, गले मिलना, अमृतकाल के नारे, मीडिया की हेडलाइनें —
ये सब अंतरराष्ट्रीय सम्मान का विकल्प नहीं हो सकते।

5. नक़ली प्रचार बनाम ज़मीनी हकीकत

दोस्तों, घर में बैठकर मत सोचिए कि— “बाहर मौसम बहुत सुहावना है”
साफ हवा देखने के लिए बाहर निकलना पड़ता है।

बहुत बार दूर से ढोल सुहावने लगते हैं,
लेकिन उसकी पोल तभी खुलती है जब पास जाकर देखा जाए।

भारत की करेंसी का गिरना, पासपोर्ट का कमजोर होना और पड़ोसी देशों की धमक —
ये तीनों साफ बताते हैं कि ढोल के शोर से देश का रुतबा नहीं बढ़ता।
रुतबा बढ़ता है आर्थिक मजबूती, कूटनीतिक सम्मान और वैश्विक भरोसे से — जो लगातार कमजोर हो रहे हैं।

सोचिए।
ज़रूर सोचिए।

मुकुल सरल

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