बौखलाए पगलाए ट्रम्प और प्रधानमंत्री की “दो नावों की सवारी”
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का हालिया बयान और उनका बौखलाया अंदाज़ एक बार फिर भारत की विदेश नीति पर सवाल खड़ा करता है। ट्रम्प ने भारत और रूस पर निशाना साधते हुए कहा कि “लगता है हमने भारत और रूस को चीन के हाथों सौंप दिया है।” यह बयान साफ दिखाता है कि ट्रम्प भारत की कूटनीतिक चालों से बेहद परेशान हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति पर नजर डालें तो वह हमेशा ऐसे बयानों का जवाब खुद नहीं देते, बल्कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं के ज़रिए बयान दिलवाकर ‘सेफ प्ले’ करते हैं। प्रवक्ता ने भी इस बार मासूमियत से कह दिया कि अमेरिका भारत के लिए “बहुत महत्वपूर्ण” है और क्वाड हमारे लिए “काफ़ी अहम प्लेटफ़ॉर्म” है।
दो नावों की सवारी: स्वदेशी बनाम विदेशी
मोदी सरकार देश के भीतर लगातार “स्वदेशी अपनाओ” का नारा देती है। शिक्षकों और छात्रों से लेकर आम जनता तक को प्रधानमंत्री विदेशी वस्तुएं छोड़ने और भारतीय उत्पादों को अपनाने की सलाह देते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है।
महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री और बीजेपी नेता ने हाल ही में एलन मस्क की कंपनी टेसला की पहली गाड़ी खरीदी और उसे “पोते के लिए तोहफ़ा” बताते हुए गर्व से घर के बाहर खड़ा करने की घोषणा कर दी। सवाल यह है कि क्या यही है मोदी सरकार का “स्वदेशी अभियान”?
जब प्रधानमंत्री अमेरिका के खिलाफ 50% टैरिफ की सख़्त कार्रवाई का हवाला देते हैं और “हर घर स्वदेशी” की अपील करते हैं, तो उसी सरकार का मंत्री अमेरिकी टेसला कार को स्टेटस सिंबल बनाता है। इससे मोदी जी के स्वदेशी अभियान पर पानी फिरता नज़र आता है।
ट्रम्प की नाराज़गी और मोदी की कूटनीति
दरअसल, मोदी जी हाल ही में चीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में गए थे, जहां उन्होंने रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ गर्मजोशी से मुलाकात की। यही तस्वीरें ट्रम्प को नागवार गुज़रीं।
अमेरिका लगातार भारत पर दबाव डाल रहा है, लेकिन मोदी सरकार चीन और रूस के साथ संबंध मज़बूत करने से भी पीछे नहीं हट रही। यही “दो नावों की सवारी” है—एक ओर अमेरिका को क्वाड और रणनीतिक साझेदारी का भरोसा दिलाना, दूसरी ओर चीन-रूस के साथ गलबहियां डालना।
सवाल अभी बाकी है…
ट्रम्प का बौखलाना साफ दिखाता है कि वह भारत से नाराज़ हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि मोदी जी की यह “दो नावों की सवारी” कब तक चलेगी?
क्या “हर घर स्वदेशी” केवल जनता के लिए नारा है और मंत्रियों के लिए टेसला जैसी विदेशी कारें स्टेटस का प्रतीक?
क्या अमेरिका, रूस और चीन के बीच संतुलन साधने की यह रणनीति भारत को कहीं कूटनीतिक संकट में तो नहीं डाल देगी?
फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन इतना तय है कि नाव अगर ज़्यादा देर तक दो दिशाओं में खिंचेगी, तो डूबने का खतरा बढ़ जाता है।