दिल्ली में ग़ाज़ा में नरसंहार के खिलाफ प्रदर्शन, ‘जेनोसाइड रोकिए’ कहने वालों पर हमला
दिल्ली के नेहरू प्लेस में मंगलवार को फिलिस्तीन के पक्ष में आयोजित एक अनूठा शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक विरोध की भेंट चढ़ गया। यह प्रदर्शन फिलिस्तीन में चल रहे इस्राइली जेनोसाइड के खिलाफ था। प्रदर्शनकारी भारत सरकार से मांग कर रहे थे कि वह इस नरसंहार के खिलाफ अपनी चुप्पी तोड़े।
कार्यक्रम में अर्थशास्त्री जॉंद्रेज, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, शिक्षिका नंदिता नारायण समेत कई बुद्धिजीवी, छात्र और आम लोग शामिल थे। लेकिन प्रदर्शन के बीच ही वहां एक उग्र भीड़ पहुँच गई, जिसने ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए, फिलिस्तीन के झंडे फाड़े और प्रदर्शनकारियों को धक्का-मुक्की कर प्रदर्शन स्थल से खदेड़ दिया।
प्रदर्शन में शामिल अंजली ने बताया,
“हम पिछले दो साल से देख रहे हैं कि इस्राइल फिलिस्तीन के निर्दोष नागरिकों को मार रहा है। पहले भारत फिलिस्तीन के साथ खड़ा था, लेकिन अब यहां से हथियार और मजदूर दोनों भेजे जा रहे हैं। हमने सोचा कि नेहरू प्लेस एक मिक्स मार्केट है, जहां टेक कंपनियों के लोग भी हैं, जो इस जेनोसाइड से मुनाफा कमा रही हैं। शायद यहां लोग बात सुनें। लेकिन हमें धमकियां मिलीं, फिलिस्तीन मुर्दाबाद के नारे लगे। हमें कहा गया – टिकट कटवा दो इनका।”
प्रदर्शनकारियों का स्पष्ट कहना था कि उनका मकसद मानवता की आवाज उठाना था। नंदिता नारायण ने कहा,
“यह इंसानियत का मामला है, धर्म का नहीं। राम ने कभी नहीं कहा कि बच्चों का कत्लेआम करो। भारत का इतिहास मानवाधिकार और उपनिवेशवाद के खिलाफ खड़ा होने का रहा है। लेकिन आज सरकार इम्पीरियलिस्ट ताकतों के साथ खड़ी है।”
वहीं, एक अन्य प्रदर्शनकारी ने बताया कि प्रदर्शन में अड़चन डालने वाले कोई बुजुर्ग लोग नहीं थे, बल्कि 25-35 साल के युवा ही थे। उनका कहना था,
“आज लोगों से सहानुभूति, इंसानियत का भाव खत्म होता जा रहा है। इतने सरल संदेश थे हमारे पोस्टरों पर – ‘Stop the Genocide’, ‘Innocent kids are being killed’, लेकिन भीड़ उन बच्चों के पक्ष में खड़े होने को भी तैयार नहीं थी।”
प्रदर्शनकारियों का यह भी कहना था कि उन्हें पुलिस से ज्यादा समस्या स्थानीय लोगों से हुई।
“पुलिस बाद में आई, सबसे पहले यही लोग आए, जिन्होंने हमें हटाया। यह बेहद शर्मनाक और डरावना है कि विरोध का संवैधानिक अधिकार भी छीना जा रहा है।”
Context and Political Critique
फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत सरकार का रुख लगातार बदलता रहा है। एक समय था जब भारत फिलिस्तीन के स्वतंत्रता संघर्ष का समर्थक था। लेकिन अब अडानी जैसे व्यापारिक समूह इस्राइल के साथ डिफेंस सौदे कर रहे हैं। प्रदर्शन में शामिल कार्यकर्ताओं ने कहा,
“जहां पैसा आ जाए, वहां सॉलिडैरिटी खत्म हो जाती है। अब हमारा खून भी फिलिस्तीनियों के खून में शामिल है।”
Conclusion (निष्कर्ष)
यह घटना दिखाती है कि भारत में विरोध का लोकतांत्रिक अधिकार कितना खतरे में है। सवाल यह भी है कि क्या भारत जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इंसानियत के पक्ष में खड़े होने पर भी हमला होगा? क्या अब यहां भी वही होगा जो इस्राइल फिलिस्तीन में कर रहा है – जनता की आवाज को दबाना?