कितनी Friendly होगी महागठबंधन में फ्रेंडली फाइट
बिहार की राजनीति इन दिनों तनावपूर्ण, उलझी हुई और तेज़ी से बदलती तस्वीर पेश कर रही है। जिस अपमान के बाद गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी और उसके बाद नीतीश कुमार-अमित शाह की तस्वीरें सामने आईं, उन्होंने चुनावी हवा फिर से गर्म कर दी है। ये अपमान क्या मायने रखता है, महागठबंधन के भीतर छिड़ी “फ्रेंडली फाइट” असल में कितनी गंभीर है, और आने वाले दिनों में पार्टियों की रणनीतियाँ किस तरह खुल सकती हैं।
क्या हुआ और क्यों हुआ
हालिया फुटेज और मीडिया कवरेज ने एक राजनीतिक विस्फोट की तरह काम किया। केंद्रीय नेताओं के बयानों और मुलाकातों के बाद सियासी तसवीरें सामने आईं — एक ओर “All is well in NDA” जैसा संदेश देने की कोशिश, दूसरी ओर महागठबंधन में सीटों पर आमने-सामने की लड़ाई (कम से कम 6 सीटें)। बीजेपी की तीखी बैटिंग और नई लिस्टों ने बिहार की राजनीति को और जटिल बना दिया है।
महागठबंधन: खिचड़ी या समन्वय?
इंडिया-गठबंधन में सीटों को लेकर “अलमॉस्ट रजामंदी” का दावा है, पर जमीन पर कई जगह फ्रेंडली फाइट चल रही है — RJD बनाम कांग्रेस, RJD बनाम मुकेश सहनी, CPI-ML बनाम कांग्रेस आदि। ऐसे में सवाल उठता है: क्या राहुल गांधी और कांग्रेस महागठबंधन की ‘खिचड़ी’ को अवश्य नियंत्रण में रख पाएंगे? पार्टियों के निजी स्वार्थ, स्थानीय दावेदार और पुराने तनाव इस चुनौती को और बड़ा बनाते हैं।
नीतीश की चाल — अपमान का जवाब या स्थिति बचाना?
नीतीश अपने राजनीतिक हुनर और चालाकी के लिए जाने जाते हैं। हालिया घटनाक्रम के बाद उनका कैडर, समर्थक और आम लोग पूछ रहे हैं — क्या वह इतना अपमान सहते रहेंगे? चुनाव के बाद CM-candidate और गठबंधन में सत्ता-वितरण का निर्णय होना है — पर क्या ये “डैमेज कंट्रोल” पर्याप्त होगा? कई संकेत बताते हैं कि नितीश गुट में बेचैनी है; फिर भी बहस यह है कि वह पलटकर मजबूत होंगे या कमजोर पड़ेगा।
बीजेपी की रणनीति — तोड़ो और आज़माओ
बीजेपी की ओर से आक्रामक बैटिंग, स्टार प्रचारकों की लिस्ट और स्थानीय गठजोड़ इसलिए जारी हैं कि वे किसी भी साथी की कमज़ोरी का फायदा उठा सकें। इतिहास में पार्टी ने विधायक तोड़कर सरकारें बनाई हैं — पर बिहार की जमीन, युवा मतदाताओं और महिलाओं की भूमिका अलग दिखती है। इसलिए बीजेपी के लिए भी यह आसान नहीं कि वह अकेले सबकुछ कर जाए — पर वे विभाजन पैदा करने की कोशिश ज़रूर कर रहे हैं।
स्थानीय समीकरण: जनता की आवाज़ और पैसों की राजनीति
स्थानीय स्तर पर 10-10 हज़ार रुपये जैसी योजनाएँ और प्रलोभन चर्चा में हैं। जमीन से आवाज़ें यह बताती हैं कि पैसों से कुछ प्रभाव हो सकता है, पर स्थायी समर्थन बनाने के लिए और गहरा संगठन चाहिए। प्रशांत किशोर जैसे नए एक्टर्स के इर्द-गिर्द भी बहस है — वे राजनीति में आए तो क्या बदलेंगे, क्या नहीं?
क्या बनेगी NDA की सरकार? और बनी तो CM कौन?
अभी NDA ने CM-candidate का ऐलान नहीं किया है। महागठबंधन के भीतर तेजस्वी नाम लगभग तय माना जा रहा है, पर राहुल गांधी का औपचारिक एलान बाकी है। चुनाव के बाद बैठकर गठबंधन पार्टियाँ अपना नेता तय करेंगी — इसलिए फिलहाल कोई फाइनल जवाब नहीं है। पर जनता और पार्टी कार्यकर्ता दोनों ही यह सवाल पूछ रहे हैं: क्या नीतीश ही बने रहेंगे या नया चेहरा उभर आएगा?
क्या अगले हफ्ते घटनाक्रम बदल सकते हैं?
हाँ। चुनावी रैलियाँ, दिवाली-सम्बंधी यात्राएँ, और नेतृतव के बीच मुलाकातें-बयानों के आधार पर स्थिति बदल सकती है। damage control वीडियो और मुलाकातें अस्थायी शांति दिखा सकती हैं, पर असल खेल तो सीटों, उम्मीदवारों और स्थानीय समीकरणों में खेला जाएगा।
निष्कर्ष
बिहार 2025 चुनाव में सिर्फ राज्य की ही नहीं, राष्ट्रीय राजनीति की भी तस्वीर बदलेगी। महागठबंधन की आंतरिक जंग, बीजेपी की आक्रामक रणनीति और स्थानीय भावनाएँ—तीनों मिलकर चुनावी नतीजे तय करेंगे। नितीश कुमार की अगली चाल, गठबंधन की चुनावी खिचड़ी और भाजपा की टूटाने-की नीति — ये तीनों फैक्टर इस खेल को रोचक बनाते हैं। हमारी नज़रें अभी आने वाले हफ्तों पर टिकें रहेंगी — क्योंकि हर नया कदम बड़ी कहानी बदल सकता है।